भारतीय संस्कृति का
वैश्वीकरण
भारत एक प्राचीन सभ्यता के रूप में
विश्व प्रसिद्ध है। प्राचीन काल से जब मानव नें व्यावसायिक कारणों से विश्व में
यात्रा का आरम्भ किया,
तब अनेक सभ्यताओं के
परस्पर संपर्क में आने के कारण सांस्कृतिक
ज्ञान का प्रचार प्रसार भी आरम्भ हुआ। इसकी छाप आज भी विश्व में देखी जा सकती है ।
उदाहरण के लिए,
आज भी इंडोनेशिया की
मुद्रा में देव गणपति चिन्हित हैं, अभी हाल ही में इंडोनेशिया ने १६ फुट
ऊँची माता सरस्वती की प्रतिमा अमेरिका में स्थापित की, जिसे अमेरिका स्थित भारतीय दूतावास के
समीप देखा जा सकता है। लेबनान में आज भी
प्राचीन भारतीय कलाविदों द्वारा निर्मित कमल उनकी कलाकृतियों का अभिन्न अंग
है। भारत द्वारा प्रदत्त "शून्य " और "अलजेब्रा" का आज भी
विश्व उपयोग करता है।
योग की बढ़ती लोकप्रियता
आज के इस ज्ञान युग में यात्रा एवं
संपर्क के नए माध्यमों ने भारतीय संस्कृति के वैश्वीकरण में उत्प्रेरक की भूमिका
का निर्वाहन किया है। प्राचीन काल से भारत
में प्रचलित योग आज विश्व भर में प्रचलित
है। अभी हाल ही में संयुक्त राष्टृ संघ ने जून २१ को "अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस " के रूप में स्वीकार्यता दी है , और
अमेरिका , चीन
सहित १७० से अधिक देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन भी किया। ये अवश्य ही योग की
बढ़ती लोकप्रियता का परिचायक है। मेरे नगर फ़्रंकफ़र्ट में भी भिन्न-भिन्न मार्गों के
अनेक योग संस्थान हैं,
किन्तु सब संस्थांओं
का उद्गम स्थान है- भारतीय संस्कृति। मेरे अनेक जर्मन मित्र अपने जीवन को योग के
प्रचार प्रसार में समर्पित कर चुके है। आर्ट ऑफ़ लिविंग" संस्थान जिसका जन्म
भारत में हुआ वह विश्व के १५० से अधिक देशों में अपनी पहचान बना चुका है।
भारतीय दर्शन में समाज की बढ़ती रूचि
भारतीय दर्शन के परिचय की धारा जिसका
आरम्भ संभवतः स्वामी विवेकानंद ने किया आज वह वेगवती नदी बन चुकी है। स्टीव जॉब्स, अल्फ्रेड फोर्ड और रॉकफेलर जैसे अनेक
प्रसिद्ध व्यक्ति इसके के प्रति कृतज्ञता का भाव व्यक्त कर चुके हैं। समाज की इस
स्वीकार्यता को विश्व चलचित्र में भी देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए प्रसिद्ध
छायाचित्र "मैट्रिक्स" मैं माया
और कर्म की अवधारणा भारतीय दर्शन से प्रेरित है। "मैट्रिक्स रेवोलुशन्स"
का समापन भी बृहदआरण्यक उपनिषद् के निम्नलिखित श्लोक से किया गया है।
"असतो मा सद
गमय, तमसो मा ज्योतिर गमय,
मृत्योरमा अमृतं गमय. शांति, शांति
, शांति
."
अभी कुछ ही दिन पहले कैलिफ़ोर्निया के
गवर्नर और सुप्रसिद्ध कलाकार अर्नाल्ड ने महर्षि महेश के "ट्रांसडेंटल ध्यान " को अपनी सफलता
का एक कारण बताया।
भारतीय भोजन
आज भारतीय भोजन विश्व भर में अपने लिए
एक पहचान बना चुका है, और
विश्व के सभी बड़े शहरों में भारतीय भोजनालय मिलना एक आम बात है। अगर आज ब्रेड
भारतीय नाश्ते में पहुँची है तो लस्सी, डोसा आदि भारतीय व्यंजनों की भी विश्व
में मांग उत्पन्न हुई है।
आयुर्वेद
धीरे धीरे विश्व समाज मात्र रोग निवारण
और पूर्ण स्वाथ्य लाभ की भिन्नता को समझ रहा है। वह चाहता है की रोग निवारण के साथ
साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढे और दवाइयों का
दुष्प्रभाव भी न हो , इसलिए विश्व में आयुर्वेद के प्रति
जिज्ञासा उत्पन्न हुई है। हालांकि इसके प्रचार के लिए अभी बहत कुछ किया जाना शेष
है।
वर्ष २००८ मैं पिउ फोरम के द्वारा कराये
गये एक सर्वेक्षण में पाया गया की अमेरिका
की ६५ % जनसंख्या, "विभिन्न धार्मिक मार्गों से व्यक्ति का
उत्थान संभव है" ऐसा विश्वास रखती है । इसी सर्वेक्षण से ये भी स्पष्ट हुआ की
२५ % जनसँख्या पुनर्जन्म में विश्वास करती है । निश्चय ही इन दोनों विचारों का उद्गम स्त्रोत भारतीय
संस्कृति है। स्पष्ट है की भारतीय संस्कृति शनेः शनेः विश्व में अपनी पहचान बना
रही है। विश्व ने जब जब ज्ञान युग में प्रवेश किया है तब भारत ने उसका मार्गदर्शन
किया है। आशा करते हैं भारतीय संस्कृति जिसने प्रकृति के साथ सामंजस्य बना के
सहस्त्राब्दियों तक जीवन यापन किया है विश्व का मार्गदर्शन करने मैं सहायक सिद्ध
होगी।
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