पुण्य भूमि यह भारत माता देवों को भी है प्यारी
राम बुद्ध नानक जन्मे और बसते शंकर त्रिपुरारी ।
मनुज रूप में देव यहाँ पर ध्यान लगाने आते हैं
यश वैभव धन का मोह त्याग , मोक्ष्य यहां पर पाते हैं।
हानि लाभ सब काल चक्र है सौभाग्य न सब दिन रहता है
आओ काल आगे देखें भारत का भाग्य क्या कहता है ।
मन के बंधन से भी स्वतंत्र था होना जिसने सिखलाया
उसके तन को भी बांध लिया हे काल दृश्य क्या दिखलाया।
मुक्ति दात्री थी जो माँ था जिसका वैभव अविनाशी
हाय समय कैसा आया वो बनी मुक्ति की अभिलाषी ।
अंग्रेजों के अत्याचारों से भारतपुत्र थे जब शोषित
इस 'सोने की चिड़िया' के धन से अंग्रेज हुए पूरे पोषित ।
हीरा मोती सोना चांदी भारत का सब लूट लिया
और शाशन करने के हेतु धर्म जात में फूट किया ।
था बंटा हुआ भारत अपना घनघोर निराशा छाई थी
था विश्व गुरु ये राष्ट्र कभी ऐसी तो न परछाई थी ।
घनघोर अंधेरे को चीरता जैसे सूरज का प्रकाश
भटके भारत को राह दिखाने आये नेताजी सुभाष ।
थे प्रखर बुद्धि के ये स्वामी ऊंचा पद पाकर ठुकराया
यश वैभव छोड़ संग्राम चुना है राष्ट्र समर्पित ये काया ।
दिल्ली चलो तुम , मुझे खून दो , तुमको दूंगा आज़ादी ।
बिगुल बज रहा विश्व युद्ध का , अवसर की हो न बर्बादी
बोले गांधी अभी शांत रहो अंग्रेज़ प्रसन्न हो जाएंगे ।
विश्व युद्ध के बाद ही भारत को सौंप हमें जाएंगे ।
बोले सुभाष की पहले भी मिला था एक ऐसा सपना
किन्तु विश्व युद्ध बाद हुआ जालियां वाला बाग अपना ।
एक बार धोखा खाये तो केवल विश्वास जाता है
बार बार धोखा खाये तो नर मूर्ख कहलाता है ।
अंग्रेजी शाशन को ये स्वर कभी रास न आते थे ।
अतः सुभाष कारागार में स्वयं को अधिकतर पाते थे ।
कैद नहीं हो सकता जैसे हवा पानी और प्रकाश
अंग्रेजों को चकमा देके बर्लिन पहुंचे सुभाष ।
कहा सुभाष ने अंग्रेज़ी बल भारत के सैनिक पर इतराता है
और भारत क्या है और कहाँ ये सैनिक समझ न पाता है ।
अन्य देश से मनवाकर स्वतंत्र सरकार बनाऊँगा
है मित्र कौन और कौन है शत्रु ये भेद में समझाऊंगा ।
'दिल्ली चलो' इस नारे से नेताजी भरते फौज में जोश
आज़ाद हिंद रेडियो के स्वर से भारत भी सुनता उदघोष।
जर्मनी ने जब रूस पर भीषण हमला करवाया
सुभाष मन ने इस कार्य को भारत हित में न पााया ।
बाधाओं से टकराने पर जो पुरुष धीर न खोता है
चट्टानों से टकराने पर भी मार्ग नए पिरोता है ।
आज़ाद हिंद फौज को फिर सिंगापुर में बनवाया
एक मार्ग अवरुद्ध हुआ तो दूजा माँ ने खुलवाया ।
धर्म जाति के बंधन छोड़ भारत को जिसने जीया था
ऐसी अनुपम फौज बनी जिसे सुभाष ने सीया था ।
युद्ध हुआ बढ़ी सेना इम्फाल में झंडा फहराया
आज़ाद हिंद फौज का डर अंग्रेज़ के मन में गहराया ।
युद्ध हुआ जापान हारा हाय छूट गया यह भी अवसर ।
लेकिन भारत स्वाभिमान का का झुका नहीं कभी सर ।
अंग्रेज़ी शासन ने जब आज़ाद हिन्द फौज को तड़पाया ।
तब बच्चा बच्चा भारत का इनके समर्थन मेें आया ।
लाल किले पर दी जाने वाली थी जब इन लोगों को फांसी
सेना ने विद्रोह किया और बंद करवाई यह गुुस्ताखी।
भय मुक्त हुए भारत वासी अब हम और न यहाँ रह पाएंगे
थके हारे अंग्रेज़ बोले कि अब बहुत जल्द ही जायेंगे ।
उन्नीस सौ सैंतालीस को भारत तब स्वतंत हुआ ।
और बहुत शीघ्र फिर अपना भारत पूरा गणतंत्र हुआ ।
अंग्रेज़ी मंत्री से पूछा , क्यों छोड़ा भारत में प्रवास
बोले कई छोटे कारण , एक बड़ा कारण सुभाष ।
दिया मौत को चकमा और 'गुमनाम' रखा अपना आवास
आज तक कोई जान ना पाया , कहाँ गए आखिर सुभाष ।
शायद माता को मुक्त कर पूरी देखी हो हर आशा
सन्यासी बनकर मोक्ष्य पानें की पूरी अंतिम अभिलाषा
अंतरिक्ष इस कविता से आज ये बतलाता है
उस भारत भक्त के जीवन का आज स्मरण कराता है ।
यदि सुुुभाष को जीना है तो जाति धर्म बंधन तोड़ो
सब भेदों को भूल कर राष्ट्र प्रेम से दिल जोड़ो ।
जब भारत का बच्चा बच्चा सुभाष बन जायेगा ।
तब विश्व गुरु प्यारा भारत पुनः फिर बन जायेगा।
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