Today on the occasion of Swami Vivekananda Jayanti wrote and recorded a poem on him remembering the sacrifices of this young sanyasi. His life altered the destiny of India and woke up a sleeping nation.
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भारत की इस पुण्य भूमि की हर एक बात निराली है
किसी भी युग में होती ना ये महापुरुषों से खाली है
जब जब भारत की देव भूमि पर कोई संकट आता है
तब अंधकार में दिया जलाने विवेकानंद को पाता है
शताब्दियों के अत्याचारों से क्षत विक्षत भारतीयता जब खोई थी
और अपनों के कुटिल अन्धविश्वास से जब भारत माता रोई थी
जब भारत के प्राचीन ग्यान का मर्म ना कोई पाता था
और ईश्वर प्राप्ति की इक्चा को मूर्खता समझा जाता था
भारत को जगाने तब विवेकानंद का समय हुआ
वेदांत का गयाँ प्राप्त कर उन्हे बड़ा विस्मय हुआ |
घूम घूम कर भारत में दुखियों को देख, आघाते थे..
हे क्यूँ इतना दुख आज यहाँ वो समझ ना पाते थे |
रोते रोते कहते थे.. हे मा कब मेरा भारत जागेगा
है अंधकार से अभी भरा कब प्रकाश को ये पाएगा
मा भारती के आशीर्वाद से शीघ्रा ही वो अवसर आया
और भारत का परिचय करवाने , धर्म संसद नें बुलवाया
कहा कि, हुमको मानव मैं भेद नहीं सबको अपना माना है
हर पथ से पा सकते हो इस सत्या को हमने जाना हो..
छोड़ो इस विडंबना को कौन सा धर्म ऊँचा है
कुएँ का मेढक को देखो, वो सागर से रीता है
सुन विवेकानंद दर्शन विस्मय से सब चकराए |
जिस को ना समझा वह ब्रह्म गयाँ को है समाए |
आपका परिचय करवाना हे सूरज को दिया दिखलाना
कहा निवेदिता ने, बहुत सीखा है आपसे ये है बतलाना |
भारत माता का यश वैभव सुन निवेदिता भारत आईं.
भारत को उसका महत्व बताते वो बहुत ही हर्षाई |
इस तरह के पुण्या संकल्पों से सोया भारत जागने लगा
आलस्य अंधकार से मुक्त हो सोता शेर भागने लगा |
आज बहुत दूर हम आएँ हैं और बहुत दूर अभी जाना है |
स्वामीजी के संकल्प से भारत को विश्वा गुरु बनाना है |
अंतरिक्ष आज इस कविता से ये बतलाता है
उस युवा सन्यासी के त्याग को आज फिर स्मरण कराता है |
आत्मनॊ मोक्षार्थम् जगद्धिताय च को हम अपनाएँ |
जगत का कल्याण करें और स्वयं के मोक्ष को भी पाएँ|
है असंभव कुछ भी नहीं , इस बात को जानो तुम
परब्रह्मा के रस से भरो हो इस सत्या को मानो तुम |
- Antariksh Bhardwaj (12th jan 2016)
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भारत की इस पुण्य भूमि की हर एक बात निराली है
किसी भी युग में होती ना ये महापुरुषों से खाली है
जब जब भारत की देव भूमि पर कोई संकट आता है
तब अंधकार में दिया जलाने विवेकानंद को पाता है
शताब्दियों के अत्याचारों से क्षत विक्षत भारतीयता जब खोई थी
और अपनों के कुटिल अन्धविश्वास से जब भारत माता रोई थी
जब भारत के प्राचीन ग्यान का मर्म ना कोई पाता था
और ईश्वर प्राप्ति की इक्चा को मूर्खता समझा जाता था
भारत को जगाने तब विवेकानंद का समय हुआ
वेदांत का गयाँ प्राप्त कर उन्हे बड़ा विस्मय हुआ |
घूम घूम कर भारत में दुखियों को देख, आघाते थे..
हे क्यूँ इतना दुख आज यहाँ वो समझ ना पाते थे |
रोते रोते कहते थे.. हे मा कब मेरा भारत जागेगा
है अंधकार से अभी भरा कब प्रकाश को ये पाएगा
मा भारती के आशीर्वाद से शीघ्रा ही वो अवसर आया
और भारत का परिचय करवाने , धर्म संसद नें बुलवाया
कहा कि, हुमको मानव मैं भेद नहीं सबको अपना माना है
हर पथ से पा सकते हो इस सत्या को हमने जाना हो..
छोड़ो इस विडंबना को कौन सा धर्म ऊँचा है
कुएँ का मेढक को देखो, वो सागर से रीता है
सुन विवेकानंद दर्शन विस्मय से सब चकराए |
जिस को ना समझा वह ब्रह्म गयाँ को है समाए |
आपका परिचय करवाना हे सूरज को दिया दिखलाना
कहा निवेदिता ने, बहुत सीखा है आपसे ये है बतलाना |
भारत माता का यश वैभव सुन निवेदिता भारत आईं.
भारत को उसका महत्व बताते वो बहुत ही हर्षाई |
इस तरह के पुण्या संकल्पों से सोया भारत जागने लगा
आलस्य अंधकार से मुक्त हो सोता शेर भागने लगा |
आज बहुत दूर हम आएँ हैं और बहुत दूर अभी जाना है |
स्वामीजी के संकल्प से भारत को विश्वा गुरु बनाना है |
अंतरिक्ष आज इस कविता से ये बतलाता है
उस युवा सन्यासी के त्याग को आज फिर स्मरण कराता है |
आत्मनॊ मोक्षार्थम् जगद्धिताय च को हम अपनाएँ |
जगत का कल्याण करें और स्वयं के मोक्ष को भी पाएँ|
है असंभव कुछ भी नहीं , इस बात को जानो तुम
परब्रह्मा के रस से भरो हो इस सत्या को मानो तुम |
- Antariksh Bhardwaj (12th jan 2016)
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