मित्रो कुछ दिन पूर्व बिहार मैं हुई अभिभावकों द्वारा प्रायोजित नकल से अपने बचपन के अनुभव का स्मरण हो आया | मैं पाचवीं कक्षा का छात्र था और एक प्रतिष्ठित मिलिटरी स्कूल मैं प्रवेश पाने के लिए प्रतियोगी परीक्षा मैं भाग लेने मेरठ गया था | पिताजी भी साथ मैं थे और एक अभिभावक जो अपने पुत्र के साथ आए थे मुझे कहने लगे की बेटा तुम दोनों साथ मैं बैठना और परीक्षा मैं एक दूसरे की मदद करना | मेरे पिताजी कुछ बोलते उससे पहले ही मैं तपाक से बोला की क्षमा करें प्रतियोगी परीक्षा मैं मैं नकल नहीं कर सकता | मैं नहीं जानता की किस संस्कार ने मुझे इतनी शक्ति दी किंतु मैने अपना सिर उठा कर परीक्षा दी | शायद मुझे ये स्वीकार था कि पद जाए तो जाए लेकिन मेरा आत्मसम्मान मेरी नज़रों मैं कम नहीं होना चाहिए |
कई वर्षों बाद , मैंने अलीगढ़ विश्वविद्यालय मैं पर्वतारोहण संस्थान द्वारा आयोजित एक 25 किलोमीटर की प्रतिस्पर्धा मैं भाग लिया । प्रतिस्पर्धा के परिणाम से मसूरी मैं पर्वतारोहण के लिए चयन होना था । सारा रास्ता भाग कर पूरा करना था, चूँकि रास्ता लंबा था और देखने वाले कम इसलिए अधिकतर प्रतिभागियों ने आने जाने वाली साइकलों पे चुपके से पीछे बैठ कर शार्ट कट लेना उचित समझा । आने जाने वालों ने मुझे भी साइकल पे आने के लिए कहा किन्तु मैंने आत्मसम्मान से समझौता करना स्वीकार नहीं किया । अंततः मेरी रैंक मेरी प्रतिभा के अनुरूप नहीं आई लेकिन संतोष था की मैंने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया । मित्रो अभी कुछ वर्षों पूर्व फ़्रंकफ़र्ट शेहेर मैं जब 42 कम की फुल मैराथन को पूर्ण किया तो उसमे बचपन के आत्मसम्मान का बल भी निहित था । अगर कॉलेज के दौरान भागने मैं मैने समझौता कर लिया होता तो शायद इतना कॉन्फिडेन्स नहीं होता. मित्रो जीवन कॉन्फिडेन्स का खेल है.. अगर आप सोचते हैं की कुछ कर सकते हैं तो आप सही हैं और इसका उल्टा भी सही है.
अभी कुछ ही दिन पहले रुढ़की शहर मैं गया. वहाँ एक बी.टेक चाट वाले के विषय मैं सुना. आज भी सामान्य जीवन मैं ऐसे अनेकों उदारहण मिल जाएँगे जिसमे ऊँची शिक्षा पाने के बावजूद लोग अपनी शिक्षा के अनुरूप पद नहीं पाते. मैं अपने विधयर्थी मित्रों से आग्रह करता हूँ की आप यथासंभव नैतिकता से समझौता ना करें, अन्यथा आप डिग्री तो कमा लेंगे किंतु आत्मविश्वास नहीं. हमेशा याद रखिए की जीवन कॉन्फिडेन्स का खेल है |
ईश्वर आपका मंगल करे.
कई वर्षों बाद , मैंने अलीगढ़ विश्वविद्यालय मैं पर्वतारोहण संस्थान द्वारा आयोजित एक 25 किलोमीटर की प्रतिस्पर्धा मैं भाग लिया । प्रतिस्पर्धा के परिणाम से मसूरी मैं पर्वतारोहण के लिए चयन होना था । सारा रास्ता भाग कर पूरा करना था, चूँकि रास्ता लंबा था और देखने वाले कम इसलिए अधिकतर प्रतिभागियों ने आने जाने वाली साइकलों पे चुपके से पीछे बैठ कर शार्ट कट लेना उचित समझा । आने जाने वालों ने मुझे भी साइकल पे आने के लिए कहा किन्तु मैंने आत्मसम्मान से समझौता करना स्वीकार नहीं किया । अंततः मेरी रैंक मेरी प्रतिभा के अनुरूप नहीं आई लेकिन संतोष था की मैंने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया । मित्रो अभी कुछ वर्षों पूर्व फ़्रंकफ़र्ट शेहेर मैं जब 42 कम की फुल मैराथन को पूर्ण किया तो उसमे बचपन के आत्मसम्मान का बल भी निहित था । अगर कॉलेज के दौरान भागने मैं मैने समझौता कर लिया होता तो शायद इतना कॉन्फिडेन्स नहीं होता. मित्रो जीवन कॉन्फिडेन्स का खेल है.. अगर आप सोचते हैं की कुछ कर सकते हैं तो आप सही हैं और इसका उल्टा भी सही है.
अभी कुछ ही दिन पहले रुढ़की शहर मैं गया. वहाँ एक बी.टेक चाट वाले के विषय मैं सुना. आज भी सामान्य जीवन मैं ऐसे अनेकों उदारहण मिल जाएँगे जिसमे ऊँची शिक्षा पाने के बावजूद लोग अपनी शिक्षा के अनुरूप पद नहीं पाते. मैं अपने विधयर्थी मित्रों से आग्रह करता हूँ की आप यथासंभव नैतिकता से समझौता ना करें, अन्यथा आप डिग्री तो कमा लेंगे किंतु आत्मविश्वास नहीं. हमेशा याद रखिए की जीवन कॉन्फिडेन्स का खेल है |
ईश्वर आपका मंगल करे.
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